इज़हार-ए-इश्क़ का आया मौसम
अरमां मचलते इस दिल में सनम
महफूज़ मुद्दत से रखा हमने इन्हें
आज क्यों ना कह दें तुमसे सनम
मालूम है फ़र्क पड़ता नहीं तुमको
हम जियें या मर जाएँ ऐसे ही सनम
हसरत दिल की दिल में ना रह जाये
यही सोच लिख बयां करते हैं सनम
तुम कब समझोगी ये अंदाज़-ए-बयां
हो ना जायें हम फनाह इश्क़ में सनम
सोचता 'निर्जन'थाम हाथ मेरा भी कभी
कहेगा हूँ मैं साथ तेरे यहाँ हर पल सनम
--- तुषार राज रस्तोगी ---