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Channel: तमाशा-ए-जिंदगी
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ग़ज़ल - श्रद्धान्जलि

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ये ग़ज़ल उन दो चमत्कारी किरदारों के नाम जो अपने जाने के बाद एक बहुत बड़ा ख़ालीपन इस दुनिया में छोड़ गए जिसे भर पाना नामुमकिन है। मरहूम अज़ीम अदाकार ॠषि कपूर और इरफ़ान ख़ान को हम सब अपनी यादों में संजोये रखेंगे। उन्हें रोते हुए नहीं एक ख़ूबसूरत मीठी सी मुस्कान के साथ विदा करते हैं। उनका काम हमेशा उन को इस फ़ानी दुनिया में अमर रखेगा। ईश्वर उन्हें जन्नत नशीन करें। ॐ शांति ॐ ।

ग़ज़ल

तिरा इक दिन अचानक से यूँ ही चले जाना
रूलाता है बहुत सबको यूँ वस्ते सफ़र जाना //१

कहानी हो गई है ख़त्म पर यारों रूको न तुम
मुमकिन हो कोई नई कहानी का लिखा जाना //२

रोएगा नहीं ये दिल तुम दोनों के बिछड़ने पर
मुझे आता है ग़म के सैलाबों में संभल जाना // ३

हो अनमोल तुम इतने ज़ाया तुमको करूँ कैसे
मुश्किल है यूँ सागर में मोती का मिल जाना //४

अश्क आसानी से अपने निकलने नहीं दूंगा
जाना ही है तो जाओ मगर हंसते हुए जाना //५

वस्ते सफ़र - बीच रास्ते / यात्रा का मध्य

- तुषार रस्तोगी 'निर्जन'

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